मुझे तो बस भगवान से शिकायत है, जमाने से नहीं! जमाने का क्या?
उसके पति यह सुनकर हैरान थे कि इतनी छोटी सी उम्र में निकिता ने यह निर्णय क्यों लिया? कहीं इसके साथ कुछ गलत तो नहीं हुआ. मन इस आशंका से कांप उठा.

निकिता शुरू से ही एक अच्छी बेटी, बहन और दोस्त थी. शादी होने के बाद वह बहुत ही अच्छी पत्नी और बहू बनी. लेकिन वह एक अच्छी बहू और अच्छी पत्नी से अचानक ही बहुत खराब यानी दुनिया की सबसे खराब बहू, बेटी, लड़की, पत्नी हो गई, बची थी तो सिर्फ दोस्ती. शायद दोस्तों ने इसे निजता का अधिकार माना इसलिए कुछ कहा नहीं.
घरवाली की बातों से तंग आकर आखिर उसके पति सौरभ ने इस दिन उसे पूछ लिया, कि बताओ तुम मां क्यों नहीं बनना चाहती? क्या तुम में कोई कमी है या तुम्हें बच्चे अच्छे नहीं लगते या फिर कोई और वजह है. पहले तो सौरभ ने झल्ला कर पूछा लेकिन जब उसने निकिता की आंखों में छलकते हुए आंसू देखे तो उसे अपनी गलती का एहसास हुआ. फौरन ही सौरभ ने प्यार से निकिता के गालों पर हाथ फेरा और कहा मन है तो बता दो नहीं मन है तो कोई बात नहीं. मैं तो हमेशा तुम्हारा हूं, तुम्हारे साथ हूं और हमेशा रहूंगा, दुनिया तुम्हारा साथ दे या ना दे, मैं तो तुम्हारा ही हूं तुमसे अलग हो ही नहीं सकता, चाह कर के भी नहीं, लेकिन हां अगर तुम मुझे नहीं बताओगी तो मैं यह समझूंगा कि तुम मुझे अपना नहीं मानती य अब तक अपना बना नहीं पाई.
शायद मुझमें ही कहीं कमी है. यह तो सभी जानते हैं कि कोई बात अंदर ही अंदर आपको परेशान कर रही है, उस बात को अपनों से बता देने से मन हल्का हो जाता है. अपनों से बताने का मतलब उससे जो बिना आप की परमिशन के किसी और से वह बात शेयर ना करें. जिससे आपके दिल को चोट ना पहुंचे. खैर कोई बात नहीं, अगर तुम मुझे अपना नहीं मानती तो नहीं मानती. कमी मुझ में ही होगी, इतना कहते ही निकिता अपने पति के गले से लिपट गई. खूब सिसक सिसक कर रोने लगी. थोड़ी देर बाद जब उसका गुस्सा और रोना दोनों शांत हुआ तो उसने अपने आप ही बताना शुरू किया.
कि वह मां क्यों नहीं बनना चाहती? उसे बच्चों से बहुत प्यार ,है उसे बच्चे बहुत अच्छे लगते हैं, लेकिन बचपन में जब वह बहुत छोटी थी 7 वर्ष की रही होगी जब उसे यह निर्णय लिया कि वह कभी मां नहीं बनेगी. उसके पति यह सुनकर हैरान थे कि इतनी छोटी सी उम्र में निकिता ने यह निर्णय क्यों लिया? कहीं इसके साथ कुछ गलत तो नहीं हुआ. मन इस आशंका से कांप उठा.
अभी सौरभ ने पूछने के लिए मुंह खोलना ही चाहा तभी निकिता ने बोलना शुरु कर दिया. वो क्या है ,ना कि मैं जब करीब 7 वर्ष की थी मैंने एक मां को अपने बच्चे को दूध पिलाते हुए देखा बड़े प्यार से वह अपने बच्चे को दूध पिला रही थी लेकिन बच्चे को दूध पिलाने में शायद ठीक से अपने आपको कवर नहीं कर पाई थी सकता है उसे बच्चे को भूख की ज्यादा चिंता थी क्योंकि वहां तो सिर्फ औरतें थी को मेल मेंबर नहीं, जो इ इतनी चिंता थी.
वहीं पर दो-तीन आंटियां बैठी थी जिन्होंने शुरू कर दी, लाज शर्म तो है नहीं ऊपर से यह देखो काला कितना खराब लग रहा है. अरे गोरा हो तो समझ में भी आता है. काले लोगों को तो कम से कम दूध पिलाते हुए … .
बस यही वह बात थी जिसने निकिता को यह निर्णय लेने पर मजबूर कर दिया कि वह कभी भी मां नहीं बनेगी. क्योंकि निकिता को लगता था कि वह काली है. इस वजह से उसने भगवान से हमेशा शिकायत की, कि भगवान आपने मुझे सब कुछ दिया रंग सांवला क्यों दिया ? इतना कह कर निकिता चुप हो गई.
उसके पति मुस्कुरा रहे थे तभी निकिता ने देखा और गुस्से से बोली मैंने कहा था ना कि मैं नहीं बताना चाहती. आपको लग रही है ना मजाक वाली बात, यह मजाक नहीं है. सौरभ ने निकिता का दोनों हाथ अपने दोनों हाथों में कसकर बड़े प्यार से पकड़ते हुए और आंखों में झाकते हुए कहा, निकिता तुम कब से जमाने की परवाह करने लगी. तुम तो एक सुलझी हुई समझदार हो. मेरा मानना तो यही है औरों का भी यही मानना है.
जमाने का क्या है वह तो कुछ भी कह देते हैं और एक बच्चा जब अपनी मां का दूध पीता है तो क्या उसे फर्क महसूस कर सकता है कि गोरी मां का दूध मीठा होता है और सावली या काली मां का नहीं. मां तो मां होती है. दूध की तो बात छोड़ो प्यार में कोई कमी आती है क्या.
तुम यह बताओ भाई बहनों में कभी ऐसा लगा कि तुम्हारे मम्मी पापा ने तुम्हारे रंग की वजह से कभी तुमसे कोई भेदभाव किया. या तुमने कभी दोस्त बनाते हुए, सामान खरीदते हुए या किसी को कुछ लेते – देते हुए रंग की वजह से कभी कोई भेदभाव किया.
मैं ने तुम्हारी दोस्त ने कभी ऐसा किया, अगर नहीं किया तो वह मूर्ख जो आज से कई साल पहले मूर्खता कर गए तुम अभी तक उस के चक्कर में पड़ी हो. माना कि उस समय तुम्हारे दिल को बहुत ठेस पहुंची होगी. एक मासूम बच्ची जो थी इतनी समझ भी नहीं थी.
लेकिन आज तो तुम एक समझदार हो, पढ़ी लिखी हो, फिर मुझे नहीं लगता कि तुम्हें ऐसी मूर्खताकरनी चाहिए थी. मुझे लगता है तुम्हें इस पर विचार करना चाहिए कि अब तुम बड़ी हो गई हो बच्ची नहीं रही सौरभ की आंखों में चंचलता साफ – साफ झलक रही थी. शायद वह उसका अंदर ही अंदर मजाक उड़ा रहा था ऐसा निकिता को लग रहा था. है या नहीं मुझे तुमसे ऐसी उम्मीद नहीं थी.
थोड़ी देर बाद जब उसका गुस्सा शांत हुआ तो अपने आप बताना शुरू किया. कि मां बनना चाहती है ,उसे बच्चों से बहुत प्यार है, उसे बच्चे बहुत अच्छे लगते हैं. मुझे तो तुमसे ऐसी मूर्खता की उम्मीद नहीं थी. मेरी बात को समझो और हां निकिता के पति ने जोर से हंसते हुए कहा तुम कहीं से भी काली तो क्या सांवली भी नहीं हो, तुम गोरी हो वह क्या है कि तुम्हारे घर में सभी मिल्की वाइट है इसलिए तुम्हें ऐसा लगता है कि तुम सांवली हो.
और मुझे इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि तुम काली हो या सांवली हो. प्यार यह फर्क नहीं देखता. भगवान श्री राम, कृष्ण भगवान क्या तुम से प्यार नहीं करती, क्या तुम इन्हें पूजा नहीं करती, करती हो ना क्यों ? वह तो सांवले थे फिर हर कोई बच्चे के रूप में भगवान श्री राम और कृष्ण जैसा बच्चा क्यों चाहता है?
अब निकिता की उलझन दूर हो चुकी थी उसे अब वाकई अपनी मूर्खता पर हंसी आ रही थी वह मन ही मन अपने आप को कोस रही थी. तभी निकिता के हस्बैंड सौरभ ने कहा चलो चलते हैं आखिर ससुर जी और सास जी को नाना-नानी भी तो बनाना है. अभी भी कोई उलझन है? निकिता ने शरमाते हुए अपनी आंखें झुका ली उसका चेहरा शर्म से लाल हो चुका था पर उलझन कहीं दिखाई नहीं दे रही थी. सिर्फ और सिर्फ खुशी थी.
“इस बात को हमेशा याद रखना चाहिए प्यार कभी भी रूप रंग नहीं देखता और जो प्यार रूप-रंग दिखता है वह प्यार नहीं दिखावट है”
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